संविधान दिवस के अवसर पर 26 जनवरी 2023 को (Pr. Draupadi Murmu) राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट में डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया। प्रतिमा का अनावरण करने के बाद मंच से महामहिम द्रोपदी मुर्मू ने जजों की भारी संख्या को संबोधित करते हुए उन्हीं के बनाए गए सिस्टम पर सवालिया निशान खड़े कर दिए। उन्होंने कहा “जैसे IPS और IAS परीक्षाओं से चुनकर आते हैं वैसे ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए परीक्षा होनी चाहिए।“
Pr. Draupadi Murmu का यह बयान न्यायिक व्यवस्था में एक विशेष वर्ग के एकाधिकार को बताता है जो 1993 से लेकर अब तक न्यायिक व्यवस्था को एक वर्ग तक सीमित किए हुए है। यह कॉलेजियम सिस्टम (Collegium system) है जिसे सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों की मनमानी कहना गलत नहीं होगा। क्योंकि इसके तहत वह जिसे चाहें उसे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में जज नियुक्त करते हैं। यही कारण है कि सुप्रीम और हाई कोर्ट में SC/ ST/ OBC जजों की संख्या न के समान है। आज हम इस लेख में कॉलेजियम सिस्टम के बारे में जानेंगे।
जिस व्यवस्था के तहत सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियां की जातीं हैं उसे “कॉलेजियम सिस्टम” कहा जाता है। दरअसल कॉलेजियम सिस्टम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका भारत के संविधान में कोई जिक्र नहीं है। साल 1993 में कॉलेजियम सिस्टम को लागू किया गया था। साल 1998 में इस प्रणाली को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने विस्तार दिय था।
यह सिस्टम 3 जजों की नियुक्ति के मामले में 28 अक्टूबर 1998 को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के कारण प्रचलन में आया था। इस सिस्टम के तहत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का पैनल जजों की नियुक्ति तबादले की सिफारिश करता है। जब कॉलेजियम सिफारिश दूसरी बार भेजी जाती है तो इसे सरकार को स्वीकार करना पड़ता है।