महाराष्ट्र

आम जनता पर फिर पड़ने वाली महंगाई की मार, थाली से स्वाद होगा गायब

प्याज, दालें, चीनी, फल और सब्जियां बिगाड़ने वाली हैं आपके किचन का बजट

विज्ञापन
WhatsApp Group Join Now
Telegram Channel Join Now

इस दिनों आम जनता वैसे ही महंगाई से परेशान है। इसी कड़ी में आप जनता की जेब एक बार फिर गर्म होने जा रही है। आने वाले दिनों में आपके किचन का बजट बढ़ने जा रहा है। बात करें महाराष्ट्र की तो यहां सूखे जैसे हालात से प्याज, दालें, चीनी, फल और सब्जियों की सप्लाई कम होने के आसार हैं। इससे इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ने के आसार है। क्योंकि, कुल उत्पादन में पर्याप्त हिस्सेदारी के साथ महाराष्ट्र इन कृषि वस्तुओं का प्रमुख उत्पादक है। कम बारिश की वजह से इस समय राज्य में जलाशयों का स्तर पिछले वर्ष की तुलना में 20% कम है।

विज्ञापन

आपको बता दें पानी की कमी के कारण महाराष्ट्र में रबी सीजन की प्याज की बुआई कम होने की आशंका है। अरहर और चीनी का उत्पादन पहले से ही गिरना तय है, जबकि गेहूं और चना की बुआई भी कम उत्पादन का संकेत दे रही है। दूसरी ओर प्याज के दाम पहले से ही ऊंचे हैं। आप जनता की जेब इसका असर सीधा पद सकता है l

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, मानसून के दौरान महाराष्ट्र में कुल बारिश सामान्य थी, लेकिन मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र और उत्तरी महाराष्ट्र जैसे कई क्षेत्रों में इसकी कमी थी। जो किसान पांच एकड़ में प्याज लगाते थे, उन्होंने पानी की कमी के कारण क्षेत्रफल घटाकर लगभग दो एकड़ कर दिया है। कुछ किसान, जिन्होंने दिवाली के दौरान बारिश की उम्मीद में प्याज की नर्सरी बोई थी, वे खरीदार तलाश रहे हैं।

रबी सीजन में 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक रहता है। प्याज की कम बुआई से अगले साल सप्लाई प्रभावित हो सकती है। प्याज की कीमतें पहले से ही ऊंची चल रही हैं। इससे अक्टूबर में रसोई घर में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 42% से अधिक हो गई है। उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक एक साल पहले की तुलना में इस महीने 6.6% ऊपर था।

प्याज के बीज से नर्सरी तैयार करने में 45 से 55 दिन का समय लगता है, जिसके बाद पौध की रोपाई की जाती है। खरीफ सीजन का प्याज 90 दिनों में तैयार होता है, जबकि रबी के प्याज को पकने में 120 दिन लगते हैं।

महाराष्ट्र और कर्नाटक में कम मानसूनी बारिश के कारण अरहर के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। चना पर भी मार पड़ने की आशंका है। महाराष्ट्र में चना और तुअर के प्रोसेसर नितिन कलंत्री ने कहा, “चना के रकबा में 10 से 15% की गिरावट होने की आशंका है।”

इसके अलावा अगर बात करें ज्वार की तो किसानों ने सोयाबीन की कटाई के तुरंत बाद खेतों में उपलब्ध मिट्टी की नमी को भुनाने के लिए जल्दी बुआई की है। ज्वार की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई 85 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई हैं। ज्वार महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक में कृषक समुदाय का मुख्य भोजन है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button