नई दिल्ली: (Delhi Court on False Allegations of Rape) दिल्ली अदालत ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि जो महिलाएं किसी व्यक्ति को दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसाने के लिए कानून का दुरुपयोग करती हैं, उनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। अदालत ने सामूहिक दुष्कर्म और अपहरण के एक मामले में तीन लोगों को बरी करते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि पीड़िता का आचरण बेहद अफसोसजनक है। उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 344 (झूठे सबूत देने के लिए मुकदमे की सारांश प्रक्रिया) के तहत कार्यवाही शुरू की जाए।
Delhi Court on False Allegations of Rape 2016 में चार लोगों के खिलाफ (जिसमे सतीश, योगेश गुप्ता, कुलदीप और सतबीर) मामले में आरोप तय किए गए थे। सतीश पर आईपीसी की धारा 376(2)(एन), 366, 323, 344, 34, 376डी और 506 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था। योगेश गुप्ता पर धारा 366, 323, 344, 34 और 376डी के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था। कुलदीप और सतबीर पर धारा 366, 323, 344, 34, 376डी और 506 के तहत आरोप लगाए गए थे ।
पीड़िता ने आरोप लगाया कि शुरुआत में आरोपी सतीश ने उसके साथ दुष्कर्म किया और उसके ससुराल वालों को उसकी नग्न तस्वीरें और वीडियो भेजकर उसे बदनाम करने की धमकी दी और पैसे की भी मांग की। रोहिणी अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह ने सतीश, योगेश गुप्ता और कुलदीप को बरी करते हुए कहा कि अपहरण और दुष्कर्म के बारे में पीड़िता का बयान पूरी तरह से गलत था, इससे झूठी शिकायत दर्ज करने का उसका मकसद भी पता चला क्योंकि उसने 2012 में आर्य समाज मंदिर में सतीश से शादी की थी, उससे यह छिपाकर कि वह पहले से ही शादीशुदा थी।