Green Hydrogen का उत्पादन करने के लिए CPCL ने IIT-मद्रास के साथ की साझेदारी
CPCL के प्रबंध निदेशक, अरविंद कुमार ने बताया कि Green Hydrogen का इस्तेमाल आंतरिक जरूरतों के लिए किया जाएगा.
चेन्नई पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (CPCL) ने आईआईटी-मद्रास (IIT-Madras) के साथ मिलकर ग्रीन हाइड्रोजन(Green Hydrogen)उत्पादन के लिए एक साझेदारी की है. इस साझेदारी में, आईआईटी-मद्रास इलेक्ट्रोलाइजर विकसित करेगा और CPCL अपने रिफाइनरी में Green Hydrogen की टेस्टिंग करेगा.
CPCL के प्रबंध निदेशक, अरविंद कुमार ने बताया कि ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल आंतरिक जरूरतों के लिए किया जाएगा. उन्होंने कहा, “इस पहल में कई उद्योग शामिल होंगे. हरित हाइड्रोजन ही भविष्य है.” अरविंद कुमार ने इस बात पर भी रोशनी डाली कि आईआईटी-मद्रास मोबिलिटी सेक्टर में परीक्षण के लिए ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल कर सकता है. उन्होंने यह भी बताया कि CPCL उत्पादन के लिए जरूरी उपयोगिताएं उपलब्ध कराएगा. यह जानकारी उन्होंने बुधवार को चेन्नई में हुए “केमिकल सेक्टर के लिए उभरती टेक्नोलॉजी” सम्मेलन के दौरान पत्रकारों को दी.
पहले समझिए क्या है हाइड्रोजन
हाइड्रोजन क्लीन एनर्जी के अंतर्गत आता है. ये एक ऐसा तत्त्व है, जो वायुमंडल में किसी न किसी से जुड़ा हुआ प्राप्त होता है. ये शुद्ध रूप से वायुमंडल में उपलब्ध नहीं हो पाता है. इसमें बहुत ऊर्जा पाई जाती है. धरती पर ये जटिल अणुओं जैसे पानी या हाइड्रोकार्बन के तौर पर पाया जाता है. ये ऊर्जा का स्रोत नहीं बल्कि वाहक है यानी इस्तेमाल के लिए इसका उत्पादन किया जा सकता है, इसे अलग किया जा सकता है या संग्रहित किया जा सकता है. इसके जलने पर पानी ही बनता है. हाइड्रोजन को प्राप्त करने के लिए जल में इलेक्ट्रोलिसिस की क्रिया अपनाई जाती है.
ग्रीन हाइड्रोजन से होंगे क्या फायदे?
देखा जाए तो अभी पवनचक्की और सोलर पावर से जरिए एनर्जी पैदा की जा रही है, जिनसे प्रदूषण नहीं होता है, लेकिन हर इंडस्ट्री में यह काम नहीं आती हैं. मान लिया कि तमाम गाड़ियां चलाने, ट्रेनें चलाने और बहुत सी फैक्ट्रियों में भी इनसे काम आसानी से हो जाता है, लेकिन आज भी स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों में कोयले की जरूरत पड़ रही है. वहीं एयरलाइंस और पानी के जहाजों के लिए लिक्विड फ्यूल की जरूरत पड़ रही है.
देखा जाए तो सिर्फ सोलर एनर्जी या उससे मिली बिजली से ये सब नहीं चल पाएंगे. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि लंबी दूरी की यात्रा रिन्यूएबल एनर्जी पर निर्भर रहते हुए नहीं की जा सकती. ऐसे में जरूरत पड़ती है हाइड्रोजन की, जिसका इस्तेमाल स्टील-सीमेंट इंडस्ट्री समेत एयरलाइंस और पानी के जहाजों में लंबी दूरी के लिए हो सकता है. इसे स्टोर किया जा सकता है और फिर जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है.